ये कैफ़ तेरा कैसा मुझपर भारी हैं lalitsingh. com या फिर तेरे ही इश़्क की खुमारी हैं! एक भी मुक्कमल हुआ अपना सपना पूछों नींद से फिर क्यूं उससे की यारी हैं! क्यूं रहता हैं समुद्र खारा,पूछो उससे भी दरिया की निर्मल जल से यारी हैं! अंदाज ए गुफ्तगूं ऐसे की मेरे हाल पर जल्द ही इसी तर्न्नुम में तुमहारी बारी हैं! बुझा रहे हो आग,दिल की भी बुझा दो इस दिल में बस तेरी ही लपटें अब सारी हैं! याद तुम्हारी दून बन गयी कश्मीर बन गयी अब मुझपर तो तेरी ही हो रही बर्फबारी हैं! ज़माना क्यूं ना अब ललित खुदगर्ज समझें सबसे की दुश्मनी और तेरे से जो की यारी हैं! ललित 7754019301
इश़्क की फिर शुरुवात हो रही है बातें करते करते रात हो रही हैं! अंजान है वो और मैं भी एकदम अभी हल्की सी पहचान हो रही हैं! सोचने बैठे थे उसके बारे में सुबह थोड़ी देर में देखा तो शाम हो रही हैं! सोचते है ना पड़े मोहब्बत में दोबारा मगर सुना है मेरी ही बात हो रही हैं! 'ललित' तो ढल जायेगा हर हाल में मगर वों ही तो नहीं तैयार हो रही हैं!
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