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कैफ

ये कैफ़ तेरा कैसा मुझपर भारी हैं या फिर तेरे ही इश़्क की खुमारी हैं! एक भी मुक्कमल ना हुआ सपना पूछों नींद से फिर क्यूं की उसने यारी हैं! क्यूं रहता हैं समुद्र खारा,पूछो उससे भी दरिया की तो निर्मल जल से यारी हैं! अंदाज ए गुफ्तगूं ऐसे की मेरे हाल पर जल्द ही इसी तर्न्नुम में तुमहारी बारी हैं! बुझा रहे हो आग,दिल की भी बुझा दो इस दिल में बस तेरी ही लपटें अब सारी हैं! याद तुम्हारी दून बन गयी कश्मीर बन गयी अब मुझपर तो तेरी ही हो रही बर्फबारी हैं! ज़माना क्यूं ना अब ललित खुदगर्ज समझें सबसे की दुश्मनी और तेरे से जो की यारी हैं!